December 30, 2025
An Interview with Animesh Anant

An Interview with Animesh Anant

Authors’ Background: Animesh Anant का लेखन किसी सोची-समझी यात्रा का परिणाम नहीं, बल्कि जीवन की विभिन्न राहों से गुजरते हुए संचित अनुभवों की सहज अभिव्यक्ति है। पेशे से मेकेनिकल इंजीनियर और कई वर्षों तक उसी क्षेत्र में कार्यरत रहे अनिमेष बाद में नौकरी छोड़कर सॉफ्टवेयर और वेबसाइट की दुनिया में भी सक्रिय रहे और बाद में शेयर बाज़ार की चुनौती पूर्ण दुनिया को अपनाया।इन उतार-चढ़ावों के बीच भी शब्दों और विचारों से उनका रिश्ता कभी टूटा नहीं।

Authors’ Background:  Animesh Anant का लेखन किसी सोची-समझी यात्रा का परिणाम नहीं, बल्कि जीवन की विभिन्न राहों से गुजरते हुए संचित अनुभवों की सहज अभिव्यक्ति है। पेशे से मेकेनिकल इंजीनियर और कई वर्षों तक उसी क्षेत्र में कार्यरत रहे अनिमेष बाद में नौकरी छोड़कर सॉफ्टवेयर और वेबसाइट की दुनिया में भी सक्रिय रहे और बाद में शेयर बाज़ार की चुनौती पूर्ण दुनिया को अपनाया।इन उतार-चढ़ावों के बीच भी शब्दों और  विचारों  से  उनका  रिश्ता  कभी टूटा नहीं।  संख्याओं और तर्क से भरे इस संसार के समानांतर, वे हमेशा शब्दों और विचारों के साथ एक निजी संवाद करते रहे।औपचारिक रूप से उन्होंने कभी लेखन नहीं किया, न ही साहित्यिक मंचों पर स्वयं को प्रस्तुत किया। सोशल मीडिया और अपनी वेबसाइट www.raagbhopali.com पर उन्होंने अलग-अलग मुद्दों पर लिखा – कभी गंभीर, कभी हल्का-फुल्का, और कभी एकदम दिल से निकली बात। वहीं से धीरे-धीरे कहानियों का रंग चढ़ा और अब ये उनकी पहली 
 किताब के रूप में सामने है।उनके लेखन की विशेषता यह है कि वे रोज़मर्रा की ज़िंदगी, रिश्तों और समाज को एक अलग कोण से देखने का साहस रखते हैं। उनके पात्र साधारण दिखते हैं, लेकिन भीतर गहरे द्वंद्व और अनकही कहानियों से भरे हुए हैं। अनिमेष की शैली में कहीं हल्की-सी दार्शनिक गहराई है, तो कहीं एक सहज, सीधी और आत्मीय भाषा, जो पाठक से सीधे संवाद करती है।यह किताब एक उपन्यास और पाँच कहानियों के संगम के साथ – उनकी लेखन-यात्रा का प्रारंभ है, जहाँ जीवन और कल्पना मिलकर नए संसार रचते हैं।

Questionnaire:

The Literature Times  : इस किताब को लिखने की प्रेरणा आपको कहाँ से मिली?

Animesh Anant : सच कहूँ तो, यह एक ऐसी प्रेरणा थी जिसे मैं किसी बाहरी घटना या योजना से जोड़ नहीं सकता। ‘संदेश’ का विचार मेरे भीतर अचानक, एक आवेग की तरह आया— मानो कोई वैचारिक सूत्र प्रकट हुआ हो।मेरी लेखन यात्रा का उद्देश्य हमेशा से एक ऐसे ‘संदेश’ को सामने लाना था जो पिंड या बिन्दु से लेकर ब्रह्मांड (Cosmic Truth) के पीछे के शाश्वत सत्य को एक धागे में बाँध सके। मुझे लगा कि यह कहानी, अपनी जटिलताओं और पहेलियों के साथ, पाठकों के सामने आनी ज़रूरी है।

जब यह सूत्र मिल गया, तो लेखन किसी प्रयास की तरह नहीं लगा, बल्कि यह महसूस हुआ जैसे मैं किसी प्राचीन रहस्य की खोज में हूँ— जिसने मुझे महज़ तीन महीनों में यह उपन्यास पूरा करने के लिए प्रेरित किया। यह मेरे लिए एक लेखक होने से ज़्यादा, एक आंतरिक खोज थी।

The Literature Times  : इस कहानी का विचार आपको पहली बार कैसे आया?

Animesh Anant :  इस कहानी का विचार मुझे पहली बार किसी कागज़ या कंप्यूटर स्क्रीन पर नहीं, बल्कि शायद… समुद्र की गहराई से मिला।

मैं अक्सर सोचता था कि जीवन की जटिलताओं के बीच, हम कितने सारे अनदेखे संदेशों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। एक दिन, मेरे मन में अचानक वह दृश्य उभरा जो आज  पुस्तक के कवर पर है: एक बोतल, जो अथाह सागर में तैर रही है, और उसके भीतर छिपी है एक पूरी दुनिया—एक शाश्वत सत्य, एक पहेली।

मैंने कल्पना की कि इस बोतल को किसने भेजा होगा, और यह किसे मिलेगा। यही वह निर्णायक क्षण था जब ‘संदेश’ की मुख्य पात्र अन्विता मेरे सामने आई, अपनी जटिलताओं से घिरी हुई, और उसे अपने जीवन को फिर से देखने का एक अवसर मिला।

यह विचार किसी बीज की तरह रोपा गया, और फिर यह उपन्यास आत्मखोज, प्राचीन रहस्य और ब्रह्मांडीय सत्य की परतों को खोलता चला गया। यह महज कहानी नहीं, बल्कि उस अनसुलझी पहेली को सुलझाने का प्रयास है जो हम सभी के भीतर छिपी है।

The Literature Times  : किताब के किस पात्र से आप सबसे ज़्यादा जुड़ाव महसूस करते हैं और क्यों?

Animesh Anant : यह हर लेखक के लिए सबसे मुश्किल सवाल होता है, क्योंकि हर पात्र लेखक के एक हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है। मेरे सभी पात्र—चाहे वह अंशुमन हो या तुरंग का खोजी पत्रकार चौहान — मेरे दिमाग के बहुत करीब हैं। उनकी जटिल सोच, खोजी प्रवृत्ति, और तर्क मेरी विचार प्रक्रिया को दर्शाते हैं।

लेकिन, जहाँ तक मन (Heart) के जुड़ाव की बात है, तो मैं ‘संदेश’ की मुख्य पात्र अन्विता और शिवा के साथ सबसे ज़्यादा जुड़ाव महसूस करता हूँ।

अन्विता के साथ इसलिए, क्योंकि उसका सफ़र केवल बाहरी पहेलियों को सुलझाना नहीं है, बल्कि अपनी सबसे बड़ी कमजोरियों से जूझते हुए आत्मखोज करना है। उसकी मानवीय कमज़ोरियाँ, उसका संघर्ष और उसकी अंतिम विजय, पाठक और लेखक दोनों को गहराई से छूती है।

वहीं, शिवा उस शाश्वत सत्य और निस्वार्थ परवाह का प्रतिनिधित्व करती है जिसे हम जीवन की भागदौड़ में अक्सर भूल जाते हैं। मन हमेशा उन्हीं पात्रों की तरफ झुकता है, जो संघर्ष और प्रेम के सबसे गहरे मानवीय मूल्यों को दर्शाते हैं।

The Literature Times  : इस  किताब को लिखते समय आपको सबसे बड़ी चुनौती क्या लगी?

Animesh Anant : ‘संदेश’ लिखते समय सबसे बड़ी चुनौती विविधता और गहराई के बीच संतुलन स्थापित करना था। यह पुस्तक सिर्फ एक उपन्यास नहीं है; यह कई परतों में चलती है—एक तरफ अन्विता की निजी भावनात्मक यात्रा है, दूसरी तरफ प्राचीन आध्यात्मिक सत्यों का अनावरण और एक जटिल पहेली का सुलझना। इस संरचनात्मक जटिलता को तीन महीनों की छोटी अवधि में पूरा करना एक तीव्र लेकिन संतोषजनक चुनौती थी।

The Literature Times  : क्या कोई विशेष संदेश या थीम है जिसे आप अपने पाठकों तक पहुँचाना चाहते हैं?

Animesh Anant : हाँ, बिल्कुल। ‘संदेश’ नाम ही दोहरी थीम को दर्शाता है।

पहला और सबसे स्पष्ट संदेश यह है कि शाश्वत सत्य हमारे आस-पास ही मौजूद हैं, और उन्हें खोजने के लिए हमें इतिहास की गहराई और प्राचीन धार्मिक स्थलों को नए नज़रिए से देखना होगा।

लेकिन, केंद्रीय थीम इससे भी ज़्यादा व्यक्तिगत है: वह है आत्मखोज (Self-Discovery)। जीवन की जटिलताओं से जूझते समय, समाधान अक्सर बाहर की दुनिया में नहीं, बल्कि हमारी सबसे बड़ी कमज़ोरियों के भीतर छिपा होता है। जब मुख्य पात्र अन्विता अपनी पहेली को सुलझाती है, तो वह वास्तव में यह खोजती है कि सृष्टि की यह विराट व्यवस्था के अलग-अलग हिस्से किस तरह एक वैचारिक सूत्र से एक-दूसरे से बँधे हुए हैं।

और इसी विचार को आगे बढ़ाते हैं, संग्रह की पाँच कहानियाँ। ये कहानियाँ विषयों में विविध हैं—जैसे रामायण के तीन पात्रों की दृष्टि से घटी अनदेखीघटनाओं पर एक मानसिक संवाद या ‘तुरंग’ की रोमांचक खोजी पड़ताल,  या फफिर मीनाक्षी-पुरुषोत्तम के निःस्वार्थ प्रेम का कोमल चित्रण। ये सभी कहानियाँ साधारण मानवीय पलों में छिपी असाधारण सच्चाइयों का उत्सव हैं, जो पाठकों को जीवन के उद्देश्य पर चिंतन करने के लिए प्रेरित करती हैं।

The Literature Times  : क्या लेखन के दौरान कोई दिलचस्प या यादगार अनुभव आपके साथ हुआ?

Animesh Anant : हाँ, बिल्कुल! ‘संदेश’ की लेखन यात्रा खुद एक रहस्योद्घाटन थी।

सबसे दिलचस्प अनुभव यह था कि जब लेखन शुरू हुआ, तो यह किसी कार्य की तरह नहीं लगा, बल्कि एक दौड़ की तरह महसूस हुआ। जैसा कि मैंने पहले बताया, यह विचार मेरे पास अचानक आया, और उसके बाद मुझे लगा जैसे मैं किसी अदृश्य शक्ति द्वारा संचालित हूँ।

कई बार ऐसा होता था कि मैं सुबह उठता और पाता कि जब तक मैं लिखना ना शुरू कर दूँ तब तक चैन नहीं आएगा। यह एक ऐसी अवस्था थी जहाँ मैं सिर्फ लिख नहीं रहा था, बल्कि कहानी को अनुभव कर रहा था।

इस तीव्रता के कारण ही, इतनी परतों वाला उपन्यास मात्र तीन महीनों में पूरा हो गया— मानो किताब ने ख़ुद को लिखने के लिए मुझे एक माध्यम बना लिया हो। यह अनुभव मुझे हमेशा याद रहेगा कि एक लेखक के रूप में हमें अपनी आंतरिक प्रेरणा पर कितना भरोसा करना चाहिए।

The Literature Times  : आपके पसंदीदा लेखक कौन हैं और उन्होंने आपके लेखन पर क्या प्रभाव डाला है?

Animesh Anant : किसी एक का नाम लेना तो संभव नहीं है क्योंकि मेरी साहित्यिक रुचि काफी विविध रही है – टॉल्सटॉय और दोस्तोवस्की से यह सीखने को मिला कि मानवीय मन और नैतिक संघर्ष की गहराई को कैसे खोजना है; वहीं, गुरुदेव टैगोर के लेखन से अंदाजा हुआ कि  सरल भाषा में शाश्वत और आध्यात्मिक सत्यों को किस तरह पिरोया जा सकता है। ‘संदेश’ की आत्मखोज और दार्शनिक परतें इन्हीं से प्रेरित हैं। मुंशी प्रेमचंद यह बात बहुत अच्छे सिखाते हैं कि पात्रों को उनके सामाजिक और भावनात्मक परिवेश में कैसे विश्वसनीय बनाया जाए, तो अगाथा क्रिस्टी तथा कॉनन डॉयल को पढ़कर कोई भी उनके इस कौशल से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता कि पाठक को बांधकर कैसे रखना है।

The Literature Times  : इस किताब को लिखने से आपके जीवन या सोच में क्या बदलाव आया?

Animesh Anant : इस किताब को लिखना मेरे लिए महज़ एक रचनात्मक कार्य नहीं था; यह एक तीव्र और जरूरी आंतरिक खोज थी…  और हाँ, इसने मेरी सोच और जीवन दोनों में मूलभूत बदलाव किए हैं।

‘संदेश’ का मुख्य विषय आत्मखोज और शाश्वत सत्य को खोजना है। जब मैं ये परतें लिख रहा था— खासकर अन्विता की यात्रा और अंशुमन के सबकुछ को एक वैचारिक सूत्र से जोड़ने वाले हिस्से को — तो मुझे खुद एहसास हुआ कि जीवन की जटिलताओं से जूझने का सबसे बड़ा समाधान बाहर की दुनिया में नहीं, बल्कि अपने ही आंतरिक ‘संदेश’ को समझने में है।

अब मैं हर चीज़ को एक अलग दृष्टिकोण से देखता हूँ। यह प्रक्रिया मुझे अधिक धैर्यवान और अपने वर्तमान लिए अधिक जागरूक  बनाती है। एक तरह से, इस  किताब ने मुझे सिखाया कि जीवन को अधिक ध्यान से पढ़ना चाहिए। इस लेखन के बाद, मेरा मानना है कि मैंने केवल एक  पुस्तक नहीं लिखी, बल्कि खुद अपने लिए –  जीवन जीने के तरीके को फिर से परिभाषित किया है।

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