
Asian Literature
बैदेही प्रियंका यादव की पुस्तक Re-Rising अयोध्या – संघर्ष और निर्माण की गाथा अयोध्या की बहुआयामी यात्रा को जिस संवेदनशीलता और गहराई से शब्द देती है, वह समकालीन हिंदी साहित्य में विशिष्ट स्थान की अधिकारी है। यह मात्र धार्मिक आख्यान नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति, राजनीति और लोक-आस्था का ऐसा दस्तावेज़ है, जो पाठक को अतीत और वर्तमान के बीच सतत संवाद की अनुभूति कराता है।
लेखिका ने आरंभ से ही स्पष्ट कर दिया है कि अयोध्या केवल एक भौगोलिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता की आत्मा का प्रतीक है। ब्रह्मा द्वारा सृजित नगरी से लेकर आधुनिक न्यायालय के निर्णय और राममंदिर निर्माण तक की घटनाओं को वह क्रमबद्ध और शोधपूर्ण ढंग से पिरोती हैं। वैदिक युग की पौराणिक छवियों से लेकर 16वीं शताब्दी के मंदिर-विध्वंस, औपनिवेशिक दौर, रामजन्मभूमि आंदोलन और 2019 के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले तक—पुस्तक में इतिहास और स्मृति के विविध परतें खुलती हैं।
कथन-शैली इस कृति का सबसे बड़ा आकर्षण है। लेखिका ने अयोध्या को मानवीय रूप देकर उसकी आत्मकथा कहलवाने का जो प्रयोग किया है, वह साहित्यिक और भावनात्मक दोनों स्तरों पर असरदार बन पड़ा है। प्रस्तावना में “मैं अयोध्या हूँ” कहकर नगर को जीवंत पात्र बना देना पाठक को सीधे उसके हृदय में ले जाता है। सरयू के तट की भोर, मंदिरों की घंटियाँ, तुलसी-चंदन की महक—ये सभी चित्रण दृश्यात्मक अनुभव कराते हैं।
पुस्तक का एक और उल्लेखनीय पक्ष स्त्री-चरित्रों का संवेदनशील चित्रण है। सीता, उर्मिला, माण्डवी, श्रुतकीर्ति जैसी स्त्रियाँ सामान्यतः रामकथा में हाशिये पर रहती हैं। बैदेही ने उनके त्याग, धैर्य और मौन प्रतिरोध को केन्द्रीय स्थान दिया है। उर्मिला की चौदह वर्षों की तपस्या हो या सीता की अग्निपरीक्षा और अंतिम आत्मसम्मानपूर्ण निर्णय—लेखिका इन प्रसंगों को नारी शक्ति और स्वाभिमान के प्रतीक रूप में प्रस्तुत करती हैं। यह दृष्टि पुस्तक को पारंपरिक धार्मिक आख्यान से अलग और अधिक मानवीय बनाती है।
साहित्यिक दृष्टि से भाषा का सौंदर्य विशेष उल्लेखनीय है। सरयू के किनारे की सुबह का वर्णन हो या वनवास का विषाद—शब्दों में कविता-सी लय है। कहीं-कहीं लेखिका की भावुकता इतनी प्रखर हो उठती है कि आलोचनात्मक दूरी कम हो जाती है, पर यही भावनात्मक तीव्रता पाठक को कथा में डुबो देती है।
इतिहास और राजनीति के प्रसंगों में लेखिका ने यथासंभव तथ्यों का सहारा लिया है। बाबरी मस्जिद विवाद, रामरथ यात्रा, करसेवकों का बलिदान और न्यायालय का फैसला—इन सबका वर्णन अपेक्षाकृत संतुलित है। हालांकि, पूरी कथा में रामभक्त दृष्टिकोण की झलक स्पष्ट है, जो इसे अकादमिक इतिहास से अलग, आस्था-प्रधान कृति बनाती है। पाठक को यह ध्यान रखना होगा कि यह शुद्ध ऐतिहासिक शोध नहीं, बल्कि आस्था और संस्कृति से सराबोर साहित्यिक आख्यान है।
पुस्तक का संदेश समकालीन भारत के लिए महत्त्वपूर्ण है—आस्था और धरोहर का पुनर्जागरण केवल मंदिर निर्माण का प्रश्न नहीं, बल्कि सामूहिक स्मृति और सांस्कृतिक आत्मसम्मान का पुनरुद्धार है। लेखिका यह भी रेखांकित करती हैं कि सदियों का संघर्ष केवल धार्मिक नहीं, बल्कि मानवीय धैर्य, न्याय और संकल्प का प्रतीक है।
कमियों की बात करें तो कुछ अध्यायों में तथ्यात्मक विवरणों की पुनरावृत्ति और भावुकता का अतिरेक दृष्टिगोचर होता है। समीक्षात्मक या बहु-दृष्टिकोणीय विश्लेषण की अपेक्षा रखने वाले पाठक को यह एकतरफ़ा लगेगा। फिर भी, यह पुस्तक अपने उद्देश्य—अयोध्या की आत्मा को नए युग में पुनर्स्थापित करने—में सफल है।
समग्रतः Re-Rising अयोध्या केवल इतिहास का पुनर्लेखन नहीं, बल्कि आस्था, त्याग और सांस्कृतिक स्मृति का जीवंत दस्तावेज़ है। बैदेही प्रियंका यादव ने जिस तरह पौराणिक आख्यान, ऐतिहासिक तथ्य और आधुनिक पुनर्जागरण को जोड़ते हुए स्त्री-शक्ति के स्वर को प्रतिष्ठित किया है, वह सराहनीय है। हिंदी साहित्य और भारतीय सांस्कृतिक विमर्श में यह कृति अयोध्या को नये सिरे से समझने का अवसर देती है और पाठक को अपने आध्यात्मिक व सांस्कृतिक मूल्यों पर विचार करने को प्रेरित करती है।
Title: Rerising Ayodhya
Author Baidehi Priyanka Yadav
Publisher Evincepub Publishing
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